सरकार की रामायण

प्रकाश जावड़ेकर (सूचना एवं प्रसारण मंत्री) जी ने घोषणा की है कि 28 मार्च से जनता की डिमांड पर रामायण धारावाहिक दूरदर्शन चैनल पर दोबारा प्रसारित किया जाएगा। पूरा भारत कोरोना वायरस के डर से 21 दिन के लिए लोकडाउन है। सभी लोग सिर्फ यही सोच रहे हैं कि 21 दिनों तक आम जरूरतों को पूरा कैसे करेंगे? खुद खाना कहाँ से खाएंगे अपने परिवार को कैसे खिलाएंगे। दिहाड़ी मजदूरों की स्थिति तो अत्यधिक दयनीय है। रोज़ कमाने खाने वाले कैसे अपने परिवार को जिंदा रख पाएंगे? बड़े शहरों में काम करने वाले दिहाड़ी मजदूर पैदल ही अपने गांव-घर की तरफ निकल चुके हैं ताकि जिंदा रह सकें। ऐसी स्थिति में कौन सी जनता है जिसने रामायण देखने की डिमांड की है। देश की अर्थव्यवस्था पूरी तरह से चरमरा गई है। यदि इस बीमारी का इलाज नहीं मिला तो स्थिति और भी भयावह हो जाएगी। अगर सरकार को जनता की इतनी ही चिंता है तो सरकार उन लोगों को घर तक पहुंचाए जो लोग बड़े शहरों को छोड़ कर पैदल ही अपने घर के लिए निकल चुके हैं, उनके लिए खाने का इंतेज़ाम करवाये, रास्ते मे ही कैम्प लगाकर उनका टेस्ट किया जाए। यदि कोई व्यक्ति कोरोना से ग्रस्त पाया जाता है उसे तुरंत अलग किया जाए जिससे कि यह रोग और न फैले। ये सब करने के बजाय सरकार लोगों को धार्मिक गुलामी की ओर धकेल रही है। उनके दिमाग मे ईश्वर नाम का वायरस डालने की कोशिश कर रही है। क्यों? क्योंकि जब इस मुसीबत की घड़ी में सारे धार्मिक स्थल बन्द हो चुके हैं। जनता का ईश्वर से भरोसा उठता जा रहा है। और यदि भरोसा उठ गया तो धार्मिक स्थानों पर भीड़ कम हो जाएगी। जो सत्ता इन्होंने धर्म और ईश्वर के नाम पर पाई है वह सत्ता भी खो जाएगी। जनता को बार-बार याद दिलाया जाएगा कि ईश्वर है। ताकि यह महामारी खत्म होने के बाद जनता अपने मूलभूत अधिकारों शिक्षा, स्वास्थ्य, सुरक्षा जैसे मुद्दों को भूल कर धार्मिक स्थलों की ओर दौड़ पड़े, और लोग धार्मिक गुलाम बने रहें।