जो धर्म आपको नीच कहता हो, उसे लात मार दो

“जो धर्म आपको नीच कहता हो उसे लात मार दो”| पर कैसे ? हजारों सालो से जो धर्म हमारे जीवन का हिस्सा है क्या उस धर्म पर लात मारना इतना आसान है ? धर्म के संरक्षक या धार्मिक शोषक कभी नहीं चाहेंगे कि धार्मिक गुलाम अपनी गुलामी को पहचाने| यदि गुलामों ने अपनी गुलामी को पहचान कर बगावत कर दी तो धार्मिक शोषकों का अस्तित्व ही खतरे में पड जायेगा| गुलामों के अंदर धर्म और ईश्वर का डर उन्हें धर्म छोड़ने से रोकता है | साथ ही धार्मिक शोषकों के द्वारा धार्मिक गुलामों को इस बात का अहसास करा दिया गया है कि “धर्म तुम्हारे जीवन का अभिन्न हिस्सा है | धर्म के बिना जीवन जीना असंभव है| तुम्हारा शोषण ईश्वर की मर्जी है और इसी के साथ तुम्हें जीना है |यदि तुम धर्म के खिलाफ आवाज़ उठाओगे तो तुम्हे नरक में भी जगह नहीं मिलेगी”| मनुष्य इतना कायर है कि वह काल्पनिक ईश्वर से प्रश्न करने कि हिम्मत नहीं जुटा सका और इन सभी बातों को सही मान लिया | इसीलिए बार बार अपमनित होने के बाद भी दलित वर्ग के लोग धर्म नहीं छोड़ पा रहे हैं|
हिन्दू धर्म में सिर्फ चार वर्ण नहीं रहे बल्कि चार वर्ण अब लगभग 4000 जातियों में बंट चुके हैं| इस भयानक जाति व्यवस्था को ख़त्म करने के लिये एक क्रांति की आवश्यकता है| किसी भी शोषक का दमन करने के लिये क्रांति की एक चिंगारी की आवश्यकता होती है, जो पूरे देश में फैलकर लोगो में जागरूकता फैलाकर क्रांति को आग बना देती है | लेकिन ब्राह्मणवाद के खिलाफ चिंगारी जल जाए बहुत बड़ी बात है| क्योकि ब्राह्मणवाद के खिलाफ चिंगारी जलाने वाले भी शोषित हैं और उस चिंगारी को बुझाने वाले भी | इसे इस तरह से समझिये , मान लीजिये कि 1 नम्बर की जाति सबसे श्रेष्ठ है और 4000 नम्बर कि जाति सबसे तुच्छ है| यदि 4000 वीं जाति वाला कोई व्यक्ति ब्राह्मणवाद के खिलाफ आवाज़ उठाता है तो उसका विरोध करने के लिये 1 नंबर की जाति को विरोध करने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी बल्कि 3999 वीं जाति ही उसका विरोध करने के लिये खडी हो जायेगी| एक तरफ प्रत्येक जाति ब्राह्मणवाद के खिलाफ लड़ने का दावा करती है तो वहीं दूसरी तरफ अपनी जातिय श्रेष्ठता को बनाये रखने के लिये भी संघर्ष करती दिखाई देती है| ब्राह्मणवाद ऐसी व्यवस्था है, जिसमे एक जाति दूसरी जाति से श्रेष्ठ है और श्रेष्ठ बने रहना चाहती है| प्रत्येक व्यक्ति ब्राह्मणवाद से ग्रसित है| ब्राह्मणवाद का विरोध करने वालों की सबसे बड़ी समस्या ये है कि वे स्वयं के लिये तो बराबरी का हक चाहते हैं लेकिन स्वयं से नीचे के व्यक्ति को अपने बराबर का हक देना नहीं चाहते|
वर्तमान धर्म सुधारक भी बार बार कहते हैं कि धर्म को छोड़ दो| पर कैसे छोड़ें? कभी नहीं बताते | आप किसी व्यक्ति से उसके जीवन का वो हिस्सा छोड़ने को कहते हैं जिसे वो अपने जीवन का अभिन्न हिस्सा (हालाँकि यह हिस्सा काल्पनिक ईश्वर के डर के कारण बना है) मानता है| | लेकिन बदले में आप उसे क्या दे रहे हैं? जब किसी बच्चे के हाथ में कोई ऐसी चीज होती है जो उसे नुकसान पहुंचा सकती है लेकिन बच्चा उसे छोड़ना नहीं चाहता तो आप क्या करते हैं? उस बच्चे को उस वास्तु से होने वाले नुकसान के बारे में बताते हैं , यदि फिर भी नहीं मानता तो उसे किसी और चीज का लालच देते हैं| शोषित समाज के लिये आवाज़ उठाने वाले बहुत से महापुरुषों ने भी यही किया| उन्होंने हिन्दू धर्म की बुराइयाँ बताई और दुसरे धर्म(जो उन्होंने स्वयं अपना लिया था) की अच्छाईयाँ| शोषित समाज के लिये आवाज़ उठाने वाले महापुरुष एवं समाज सुधारक (जो स्वयं कोई और धर्म अपना चुके हैं) धर्म परिवर्तन करने को कहते हैं| डॉ भीमराव आंबेडकर ने कहा है – “चूँकि हमारा दुर्भाग्य है कि हम स्वयं को हिन्दू कहते हैं, इसलिए हमारे साथ ऐसा बर्ताव होता है। यदि हम किसी और धर्म को मानते तो हमारे साथ कोई ऐसा व्यवहार न करता। कोई भी ऐसा धर्म अपना लो जो तुम्हें गरिमा और बराबरी का दर्जा देता हो”। किसी हद तक बात सही है , जो धर्म बिना भेदभाव के सभी का सम्मान करता हो उसे अपना लेना चाहिए| पर क्या धर्म परिवर्तन करने से कोई व्यक्ति अपने अंदर के ईश्वर रुपी डर को दूर कर सकता है?
धर्म और ईश्वर एक दुसरे के पूरक हैं| जहाँ धर्म होगा वहां ईश्वर भी होगा| दोनों का अस्तित्व सिर्फ मनुष्य के डर और अज्ञानता के कारण ही है| बौद्ध धर्म में ईश्वर का अस्तित्व नहीं है | भारत में अधिकांश शोषित जाति के लोगों ( अधिकांश लोग ब्राह्मणवाद की महामारी से ग्रसित हैं) ने ही बौद्ध धर्म को अपनाया है| पर क्या बौद्ध धर्म अपनाने के बाद वो काल्पनिक ईश्वर के डर को छोड़ पाए हैं? नहीं| बल्कि उन्होंने बौद्ध धर्म को अपनाकर महात्मा गौतम बुद्ध को ही भगवान बना दिया हैं| ईश्वर भी ब्राह्मणवादी व्यवस्था का हिस्सा है, जिसे ब्राह्मणवादी लोग छोड़ने को तैयार नहीं हैं| शोषित जाति के लोग हिन्दू धर्म में रहकर नहीं समझ पाए कि ईश्वर ही उनके शोषण का कारण है इसीलिए उन्होंने बौद्ध धर्म में नए भगवान को जन्म दे दिया| जिसका मुख्य कारण उनकी कायरता और अज्ञानता है| शोषित जाति के लोगों को ऐसा लगता है कि जो सम्मान हिन्दू धर्म के भगवान ने नहीं दिया वो सम्मान उन्हें बौद्ध धर्म के भगवान दे देंगे| लेकिन उन्हें याद रखना होगा, जिस ब्राह्मणवाद को वो अपने साथ ले गए हैं, भविष्य में वही ब्राह्मणवाद उनके शोषण का कारण बनेगा|
अशिक्षा और अज्ञानता के कारण ही ईश्वर रुपी डर ने विशालकाय रूप धारण कर लिया है| यह डर हजारों वर्ष पुराना है जो धर्म परिवर्तन मात्र से दूर नही होगा| इस डर को दूर करना है तो लोगों को शिक्षित करना होगा, उनमे वैज्ञानिक द्रष्टिकोण जाग्रत करना होगा और उन्हें समझाना होगा कि ईश्वर काल्पनिक है|
बुराई इसलिए नहीं बढती क्योकि बुरे लोग बढ़ गए हैं बल्कि बुराई इसलिए बढती है क्योकि बुराई सहन करने वाले लोग बढ़ गए हैं| – भगत सिंह
Ashish
Nice
Parkash
Bilkul sahi kaha hai Bhai.maha pursh lalai singh Yadav ji, shri Periyar ji ne bhe yehi kaha hai